Biology study notes in Hindi for SSC-CGL and other exam

हेल्लो दोस्तों
हम इस पोस्ट में आपको बतायेगे बायोलॉजी के कुछ ऐसे टॉपिक को जो SSC-CGL, और अन्य प्रतियोगी परीक्षा में अक्सर पूछे जाते है


परिसंचरण तंत्र:







परिसंचरण तंत्र के विपरीत जिसमें रक्‍त खुले अवकाशों में बहता है, मानवों में बंद परिसंचरण तंत्र पाया जाता है जहाँ रक्‍त का प्रवाह रक्‍त नलिकाओं के बंद जाल में होता है।

रक्‍त परिसंचरण की खोज वैज्ञानिक विलियम हार्वे द्वारा की गयी थी।

इसके चार भाग हैं –

(i) ह्रदय

(ii) धमनियाँ

(iii) शिरायें

(iv) रुधिर

ह्रदय:

हृदय एक पंपिंग अंग है जो कि एक लयबद्ध तरीक से संकुचन (आयतन कम होने) और फैलाव (आयतन बढ़ने) की च‍क्रीय प्रक्रिया में कार्य करता है।इन दोनों के एक चक्र पूरा होने पर एक हृदय की धड़कन कहते है और मनुष्‍य के ह्रदय में यह चक्र पूरा होने में 0.8 सेकण्‍ड लगते हैं।यह हृदयावरण में सुरक्षित रहता है।इसका भार लगभग 300 ग्राम है।मनुष्‍य का हृदय चार कोष्ठों का बना होता है।अगले भाग में दायां आलिंद और बायां आलिंद होता है।पिछले भाग में दायां निलय और बायां निलय होता है।दायें आलिंद और दायें निलय के मध्‍य त्रिवलनी कपाट होती है।बायें आलिंद और बायें निलय के मध्‍य द्विलनी कपाट होती है।शिरायें वे रक्‍त वाहिनियाँ हैं जो रक्‍त को शरीर से हृदय की ओर ले जाती हैं।शिराओं में कार्बनडाइऑक्‍साइड युक्‍त अशुद्ध रक्‍त होता है।पल्‍मोनरी शिरा एक अपवाद है यह शुद्ध रक्‍त का प्रवाह करती है।पल्‍मोनरी शिरा फेफड़े से बायें आलिंद में रक्‍त का प्रवाह करती है। इसमें शुद्ध रक्‍त पाया जाता है।धमनियाँ वे वाहिनियाँ हैं जो सदैव हृदय से शरीर की ओर रक्‍त का प्रवाह करती हैं।धमनियों में शुद्ध ऑक्‍सीजन युक्‍त रक्‍त का प्रवाह होता है।लेकिन पल्‍मोनरी धमनी इसका अपवाद है यह सदैव अशुद्ध रक्‍त का प्रवाह करती है।पल्‍मोनरी धमनी में रक्‍त का प्रवाह दायें निलय से फेफड़े की ओर होता है। इसमे अशुद्ध रक्‍त होता है।हृदय के दाहिने भाग में, अशुद्ध (कार्बनडाइऑक्‍साइड युक्‍त) रक्‍त रहता है, जबकि हृदय के दाहिने भाग में शुद्ध ऑक्‍सीजन युक्‍त रक्‍त रहता है।हृदय की मांसपेशियों को रक्‍त पहुँचाने वाली धमनियों को कोरोनरी धमनी कहते हैं। इसमें किसी भी प्रकार के अवरोध आने पर हृदयाघात होता है।

परिसंचरण का मार्ग:

स्‍तनधारियों में द्विपरिसंचरण होता है।इसका अर्थ है कि रक्‍त को पूरे शरीर में प्रवाहित होने से पूर्व हृदय से दो बार गुजरना होता है।दायां आलिंद शरीर से अशुद्ध रक्‍त प्राप्‍त करता है जहाँ से यह दायें निलय में प्रवेश करता है। यहाँ से रक्‍त पल्‍मोनरी धमनी में जाता है जो इसे फेफड़े में शुद्धिकरण के लिये पहुँचाती है। शुद्धिकरण के बाद रक्‍त पलमोनरी शिरा द्वारा एक‍त्रित कर वापस हृदय में बायें आलिंद में पहुँचता है। यहाँ से रक्‍त बायें निलय में पहुँचता है। इस प्रकार का यह एक पूर्ण परिसंचरण हृदय चक्र कहलाता है।

हृदय चक्र:

हृदय चक्र को हृदय में दो पेसमेकरों द्वारा नियंत्रित किया जाता है।साइनो-आर्टियल-नोड (एसए नोड) दायें आलिंद की ऊपरी दीवार पर स्थित होता है।एट्रियो-वेंट्रिकुलर नोड (एवी नोड) दायें आलिंद एवं दायें निलय के मध्‍य स्थित होता है।दोनो ही पेसमेकर तंत्रिका तंत्र प्रकार के होते हैं।

रक्‍त दाब:

वह दाब जो रक्‍त द्वारा रक्‍त वाहिनी नलिका पर लगाया जाता है, रक्‍त दाब कहलाता है।शरीर के अंगों तक रक्‍त पहुँचाने वाली रक्‍त वाहिनियों में यह अधिक होता है (सिस्‍टोलिक दाब)शरीर से हृदय तक रक्‍त पहुँचाने वाली रक्‍त वाहिनियों में कम होता है। (डायसिस्‍टोलिक दाब)सामान्‍य रक्‍त दाब 120-80 mm Hg होता है।

बेतार कृत्रिम पेस मेकर:

जब एस.ए. नोड खराब या छतिग्रस्‍त हो जाता है तो हृदय की धड़कनें उत्‍पन्‍न नहीं होती हैं।

इसके समाधान लिये हम बेतार पेसमेकर का प्रयोग करते हैं जो कि अंग के बाहर बेतार पराध्‍वनिक तरंग से हृदय की धड़कन को नियंत्रित करती है।

यह पारंपरिक पेसमेकर से बेहतर है क्‍योंकि तार के खराब हो जाने की स्थिति में उसे बदलने के लिये अतिरिक्‍त सर्जरी की आवश्‍यकता नहीं पड़ती है।

हृदय से जुड़ी बीमारियाँ:

धमनी का पत्‍थर होना: इसमें धमनियों में सजे टुकड़ों के निर्माण और कैल्‍सीकरण के कारण धमनी की दीवारें कठोर हो जाती हैं।

एथ्रोस्‍केलेरोसिस: धमनियों की दीवारों में कोलेस्‍ट्रॉल के जमा होने के कारण वे पतली हो जाती हैं और जिसके कारण उनमें रक्‍त के प्रवाह में रूकावट आती है।

हृदय घात: हृदय में अचानक रक्‍त की आपूर्ति में कमी आने पर हृदय घात होता है जिसके कारण हृदय की मांसपेशी क्षतिग्रस्‍त हो जाती हैं।

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पाचन तंत्र:


मनुष्‍य भोजन के लिये अन्‍य प्राणियों पर निर्भर है, इसलिये इसे परपोषित जीव कहते हैं। उन्‍हें दैनिक कार्यों के लिये पोषक तत्‍वों की आवश्‍यकता होती है। पोषण की संपूर्ण प्रक्रिया को पाँच चरणों में बांटा जा सकता है।

अंतर्ग्रहणपाचनअवशोषणस्‍वांगीकरणमल परित्‍याग

अंतर्ग्रहण:

मुँह में भोजन ग्रहण करने की प्रक्रिया को अंतर्ग्रहण कहते हैं।

पाचन:

कुछ भोजन ऐसे होते हैं जो सीधे अवशोषित नहीं होते हैं, इसलिये गैर-अवशोषित भोजन का अवशोषित किये जाने योग्‍य भोजन के रूप में रूपांतरण की प्रक्रिया को पाचन कहते हैं।भोजन का पाचन मुख से प्रारंभ होता है।मुख में लार ग्रंथियाँ होती हैं जोकि मुख में लार का स्‍त्राव करती हैं। लार में दो प्रकार के एंजाइम टाइलिन और माल्‍टेज पाये जाते हैं।ये साधारण शर्करा को बदलकर उसे पाचन योग्‍य बनाते हैं।प्रतिदिन मनुष्‍य में औसतन लगभग 1.5 लीटर लार का स्‍त्राव होता है। इसकी प्रकृति अम्‍लीय होती है और pH मान 6.8 होता है।आहारनाल के माध्‍यम से भोजन अमाशय में पहुँच जाता है।

अमाशय में पाचन:

भोजन के अमाशय में पहुँचने पर पाइलोरिक ग्रंथियों से जठर रस निकलता है। जठर रस हल्‍के पीले रंग का अम्‍लीय द्रव होता है।अमाशय की ऑक्सिन्टिक कोशिकाओं से हाइड्रोक्‍लोरिक अम्‍ल निकलता है, जो भोजन के साथ आये सभी जीवाणुओं को नष्‍ट कर देता है और एंजाइम की क्रिया को तीव्र कर देता है।हाइड्रोक्‍लोरिक अम्‍ल भोजन को अम्‍लीय बना देता है जिससे लार की टायलिन की क्रिया समाप्‍त हो जाती है।जठर रस में अन्‍य दो प्रकार के एंजाइम पेप्सिन और रेनिन होते हैं।पेप्सिन प्रोटीन को पेप्‍टोन्‍स में विखंडित कर देता है।रेनिन कैसिनोजेन को केसिन में बदल देता है।

पक्‍वाशय में पाचन:

भोजन के पक्‍वाशय में पहुँचने पर सर्वप्रथम यकृत से पित्‍त रस आकर मिलता है।पित्‍त रस क्षारीय होता है और इसका मुख्‍य कार्य भोजन को अम्‍लीय से क्षारीय बनाना है।अग्‍नाशय से अग्‍नाशय रस आकर मिलता है और इसमें निम्‍नलिखित एंजाइम होते हैं:ट्रिप्सिन: य‍ह प्रोटीन और पेप्‍टोन्‍स को पॉलीपेप्‍टाइड और अमीनो अम्‍ल में बदल देती है।अमाइलेज: यह स्‍टार्च को घुलनशील शर्करा में बदल देती है।लाइपेज: यह इम्‍लसीफाइड वसा को ग्लिसरॉल और फैटी एसिड में बदल देती है।

छोटी आंत:

यहाँ पाचन की क्रिया समाप्‍त होती है और भोजन का अवशोषण शुरु होता है।छोटी आंत में आंत्रिक रस निकलता है और यह प्रकृति में क्षारीय होता है। लगभग प्रतिदिन 2 लीटर आंत्रिक रस का स्‍त्राव होता है।आंत्रिक रस में निम्‍नलिखित एंजाइम होते हैं:इरेप्सिन: यह शेष बचे प्रोटीन और पेप्‍टोन्‍स को अमीनो अम्‍ल में परिवर्तित कर देता है।माल्‍टेज: यह माल्‍टोज को ग्‍लूकोज में बदल देता है।सुक्रेज: यह सुक्रोज को ग्‍लूकोज और फ्रक्‍टोज में बदल देता है।लैक्‍टेज: यह लैक्‍टोज को ग्‍लूकोज और गैलक्‍टोज में बदल देता है।लाइपेज: यह इमल्‍सीफाइड वसा को ग्लिसरॉल और फैटी एसिड में बदल देता है।

अवशोषण:

पचे हुए भोजन की रक्‍त में मिलने की क्रिया को अवशोषण कहते हैं।पचे हुए भोजन का अवशोषण छोटी आंत की विल्‍ली के माध्‍यम से होता है।

स्‍वांगीकरण:

शरीर में अपशोषित भोजन का प्रयोग स्‍वांगीकरण क‍हलाता है।

मल परित्‍याग:

अपचा हुआ भोजन बड़ी आंत में पहुँचता है जहाँ जीवाणुओं द्वारा इसे मल में बदल दिया जाता है जो कि गुदा द्वारा शरीर से बाहर निकल जाता है।

पाचन तंत्र से जुड़े विकार:

यहाँ मानव को होने वाली कुछ पाचन सम्बन्धी समस्याएं दी गयी हैं

उल्‍टी: पेट में जलन के कारण मुख से भोजन का बाहर निकलना।

अतिसार (डायरिया): इस संक्रामक बीमारी से आंत में घाव हो जाता है।

पीलीया: त्‍वचा और श्‍लेष्‍म झिल्ली का रंग पीला पड़ जाता है।

पथरी: कोलेस्‍ट्रॉल के जमने से पथरी का निर्माण होता है।

अपच: बड़ी आंत में भोजन के आधिक्‍य प्रवाह के कारण मलपरित्‍याग में परेशानी होती है।


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